कोरोना की कविता
कोरोना की कविता
कोरोना हूँ देखिएगा संभलिएगा
घर से बहार मत निकलिएगा.
किसी पर भी अटेक कर सकता हूँ,
कोरोना हूँ......
किसी को भी चुन सकता हूँ,
चाहे अमिर या गरीब
कोई भी आये मेरे करीब
समजिये वह हो गया मेरा मरीज
कोरोना हूँ.......
फिर से कहता हूँ आपका यहाँ वहा
घूमने का बहुत नाटक सहता हूँ,
कोरोना हूँ .... फिर से कहता हूँ,
दोस्त जरुरी है,
कमाना जरुरी है,
पर इनसे कही ज्यादा मुझसे बचना जरुरी है,
कोरोना हूँ......
जो बिंदास घूमता है उसको ही चुनता हूँ,
फिर न उनकी सुनता हूँ,
और न उनके भगवान की सुनता हूँ ,
फिर में मरू तो मरू,
साथ उनको भी मारता हूँ,
और साथ उनके परिवार को भी रुलाता हूँ,
कोरोना हूँ.....
ना में डरता हूँ और ना में डराता हूँ,
दोस्त के नाते समझता हूँ,
मुझ से दूर रहो परिवार के पास रहो,
और सुरक्षित रहो सतर्क रहो,
कोरोना हूँ...... देखिएगा संभलिएगा
- दोस्तों इस कविता द्वारा हम आपको एक ही बात बताना चाहते हे की लोकडाउन के निति नियमो का पालन कीजिये घर पर रहिये और सुरक्षित रहिये।
- अच्छा लगा तो कमेंट करिये और कोई सुझाव हो तो कमेंट करिये और हां दोस्तों सब्सक्राइब करना ना भूले।
लेखक:
नागजी पारेख
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